
How to Join Indian Army
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How to join Indian army as a officer
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धैर्य और अनुभव, एक संस्था के विकास को प्रभावित करते हैं।
चार प्रमुख युद्ध, विद्रोह और अन्य छोटे-छोटे युद्धों(wars) को लड़ने की वजह से, वास्तव में भारतीय सेना, अच्छी-खासी और प्रभावी कुशलतापूर्वक लड़ाई करने वाली, युद्ध मशीन के रूप में उभरकर सामने आई है।#indian_army

बदलते समय की सबसे बड़ी जरूरत है कि बदलाव लाया जाएं। लड़ाई प्रशिक्षण(Training) के दौरान सेना की संरचना के बारे में भी बताना चाहिए, क्योंकि यह ऐसा कार्य है जिसमें उपलब्ध परिसंपत्तियों, यानि पुरूष(Man) और सामग्री दोनों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय सेना #indian_armyकी संरचना और कमान पर एक नज़र दर्शाती है कि किस प्रकार इन्होने प्रमुख युद्धों; जिन्हे लड़ा गया था और जो वर्तमान भू-राजनीतिक संदर्भ में हैं, के अनुभवों के आधार, भारत की खतरों से रक्षा की है।
दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक भारतीय सेना #indian_army में लोगों पर इसमें भर्ती होने के लिए अनिवार्य रूप से दबाव नहीं डाला जाता है। सेना#indian_army में भर्ती होने के लिए मांग की तुलना में कहीं ज्यादा लोग इसमें शामिल होने के इच्छुक होते हैं। लेकिन यह ऐसी स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करता है
जिसमें बेरोजगार लोग, बिना मर्जी के वर्दी(Uniform) को शरीर और आत्मा पर पहन लेते हैं। तीन शताब्दियों पहले, ब्रिटिश के द्वारा पता लगा लिया गया था कि भारत देश के लोगों में बुनियादी रूप से देश के प्रति समर्पण भाव होता है।
देश में भारी संख्या में ऐसे लोग हैं जो अपनी रूचि और पसंद के अनुसार, अपनी पारिवारिक आदतों और सम्मान के कारण, देश की सेवा में लम्बे समय तक जुड़ना चाहते हैं।
अगर भारतीय मूल का एक युवा पुरूष या महिला, तन-मन से देश के मैदानी क्षेत्रों से सटी सीमाओं में रहकर देश की सेवा करते हुए अपने उपयोगी कार्यकारी वर्षों को व्यतीत करना चाहता है तो उसे इंकार नहीं किया जा सकता है।

भर्ती के प्रयोजन के लिए, देश(country) में होने वाली भर्तियों को क्षेत्रों में बांटा गया है। प्रत्येक क्षेत्र में वहां की जनसंख्या और जातीय समूह के प्रतिशत के आधार पर भर्ती के लिए आरक्षण आवंटित किया जाता है। धीरे-धीरे पनपी इस विरासत में, सेना ईकाईयों या रेजीमेंट को विशेष क्षेत्र या जातीय समूहों के मिश्रण से लोगों को भर्ती करके बनाया गया है।
एक बार सेना में शामिल हो जाने के बाद, व्यक्ति देश को समर्पित हो जाता है। कई लोग बुनियादी प्रशिक्षण चरण में बाहर हो जाते हैं क्योंकि उनकी समझ में आ जाता है कि सेना में स्मार्ट वर्दी के अलावा भी बहुत कुछ करने को होता है। जो बिना एक भी नोट को छोड़े बिना, तुरही की ध्वनि को सुन लेता है, वह शपथ लेता है और देश की सेवा में लग जाता है न कि दासता में।#indian_army
Indian Army Headquarters
सर्वप्रथम भारतीय सेना #indian_army का मुख्यालय, दिल्ली के लाल किले में था। यद्यपि यह एक भव्य भवन है परन्तु भारतीय सेना के समान जटिल इकाई के लिए यह उपयुक्त नहीं था। उस समय सुप्रीम मुख्यालय ने दक्षिणी ब्लॉक में अपना नियंत्रण कायम रखा व इस स्थान पर किसी अन्य को अधिकार देने से इंकार कर दिया। भाग्यवश, कुछ समय के उपरान्त यह नियंत्रण ख़त्म कर दिया गया था। #indian_army
वर्तमान में भारतीय सेना का मुख्यालय, लाल किले के दक्षिण ब्लॉक के कुछ अंशों तथा उससे संलग्न आधुनिक व अत्यंत विशाल सेना भवन में स्थित है।

भारतीय परिप्रेक्ष्य में, कमान मुख्यालय, लेफ्टिनेंट जनरल (तीन सितारा) रैंक वाले मामलों की अध्यक्षता पर एक जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ के साथ एक क्षेत्र सेना या यहां तक कि सेना समूह मुख्यालय के लिए किया जा सकता है। #indian_army
पदानुक्रम में अगला स्थान, कोर मुख्यालय का है जो अन्य देशों में प्रायः क्षेत्रीय सेना मुख्यालय के नाम से जाना जाता है। भारतीय सेना के लड़ाकू दल, ऐसे ही कोर मुख्यालयों के अधीन वर्गीकृत किये गए हैं (जिनमें से कुछ बलों को स्थानीय क्षेत्रीय कमान के अधीन रखा गया है)।
स्थिर क्षेत्र, उपक्षेत्र व स्वतंत्र उपक्षेत्र, देश के कोने-कोने तक फैले हुए हैं। ये, संरचनात्मक (व संचार) संपत्ति की रक्षा करते हैं तथा क्षेत्र सेना बलों को क्षेत्र में स्थित विभिन्न सहायक संस्थाओं के प्रशासन के कार्य से मुक्त रखते हैं।
क्षेत्रों की सीमाएं, राज्यों या राज्य समूहों की प्रशासनिक सीमाओं के अनुसार चिन्हित की जाती हैं। इसके अलावा, सभी मुख्यालयों पर नागरिक-सेना समन्वय बनाये रखने का भी उत्तरदायित्व होता है।
स्थानीय क्षेत्र (यहां तक कि कुछ मामलों में क्षेत्र संरचनाएं), स्टेशन मुख्यालय स्थापित करती हैं जिनका उत्तरदायित्व क्षेत्र, कोई जिला या जिला समूह होता है।
इन क्षेत्रों में स्थापित स्थानीय सेनाबल को, इन स्थानीय मुख्यालयों के माध्यम से नागरिक प्रशासन की सहायता करने का काम सौंपा गया है। यह विचित्र है परन्तु यह प्रणाली कार्य करती है।
सेना कर्मचारी के अध्यक्ष (सीओएएस), विभिन्न भूमिकाएं निभाते हैं। 11 लाख पुरुषों व महिलाओं की संपूर्ण सेना के लिए, वह उनके प्रधान नेता होते हैं। कई स्टाफ अधिकारी, उनके सहायक के रूप में कार्यरत हैं, जैसे कि मुख्य कर्मचारी अधिकारी (पीएसओ), शस्त्र व सेवाओं के प्रमुख के रूप में आदि।
उनके पदों तथा कार्यभारों का वर्णन करने के लिए एक विस्तृत ग्रंथ लिखने की जरूरत पड़ जाएगी, अगर बताया जाएं।
सन् 1960 तक, कर्मचारी समन्वय, एकतंत्रीय कार्य था, जहाँ एक तीन सितारा जनरल अधिकारी को जनरल स्टाफ प्रमुख के रूप में पदासीन किया जाता था एवं उन्हें ‘कुछ’ – पीसीओ तक प्रत्यक्ष संचार माध्यम उपलब्ध करवाया जाता था।
वर्तमान में, सेना कर्मचारी के एक उप प्रमुख व दो सहायक प्रमुख, समन्वय का नियंत्रण रखते हैं। चीफ व उनके सेना कमांडरों के मध्य संचार सीधे होता है व किसी को भी इसके मध्य आने की अनुमति नहीं होती है।
सेना मुख्यालय पर पीएसओ (व पदानुक्रम में अन्य), नब्बे के दशक की नामावली के अनुसार ही पदासीन हैं, तथा उन्हे, नयी सांख्यिक-वर्णिक पदों की प्रशासनिक नामावलियों का अनुसरण नहीं करना पड़ा।
क्वार्टरमास्टर जनरल, आयुध के मास्टर जनरल, एडजुटेंट जनरल, सैन्य सचिव, इंजीनियर-इन-चीफ, सिग्नल-ऑफिसर-इन-चीफ आदि को उनके परंपरागत पदनामों से ही संबोधित किया जाता है।
ब्रिगेड स्तर के जनरल कर्मचारी अधिकारी व उनके रसद समकक्षों को वर्तमान में भी जीएसओ, उप-सहायक एडजुटेंट जनरल व उप-सहायक क्वार्टरमास्टर जनरल से ही संबोधित किया जाता है।
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क्षेत्र बल को कोर में वर्गीकृत किया गया। इनमें से कुछ रक्षा दल हैं जो पिछले कुछ वर्षों में अपनी एक पकड़ बना चुके हैं। अन्य को रिज़र्व या अनौपचारिक रूप से ‘आक्रामक’ दल कहा जाता है। वास्तव में रक्षा दल एक मिथ्या संज्ञा है क्योंकि, रक्षा दल स्वयं ही अत्यधिक आक्रामक क्षमता रखते हैं।
कोर मुख्यालयों का गठन, 3-5 डिवीजनों या उनके समकक्षों के सभी हथियार क्षेत्र सेना को संभालने के लिए किया जाता है। सैन्य मुख्यालय, विशाल व लघु दोनों प्रकार के हो सकते हैं, परन्तु दोनों ही प्रकार से वे अत्यंत शक्तिशाली होते हैं। हैवी-ट्रैक्ड-कोर, पूर्व के उदाहरण हैं और तीन पैराशूट कमांडो (बटालियन आकार की ईकाईयां), जो कि विशेष सैन्य का उत्तरदायित्व निभाती हैं। वायुवाहिनी, वायु आक्रमण व पैराशूट सैन्य दल, आमतौर पर केंद्रीकृत होते हैं। सभी मामलों में, माउंट्स, भारतीय वायु सेना द्वारा उपलब्ध कराये जाते हैं।

सेना की लड़ाई के क्रम में पहाड़ डिवीजन, पैदल सेना डिवीजन, बख्तरबंद डिवीजन (जिसमे टैंक इकाइयाँ प्रमुख हैं) तथा यंत्रीकृत डिवीजन (जिसमे प्रमुखतः यंत्रीकृत पैदल इकाइयाँ हैं) हैं। स्वतंत्र ब्रिगेड समूह, बख्तरबंद, यंत्रीकृत, वायु रक्षा दल (मिसाइल या गन), पैराशूट, इंजीनियर, फील्ड आर्टिलरी, इलेक्ट्रॉनिक संघर्ष या यहां तक कि मानक पैदल सेना और पहाड़ भी हो सकते हैं। ये सभी कोर/आर्मी सैन्य दस्तों का निर्माण करते हैं; इनका संचालन, कोर या आर्मी स्तर पर मिशन या कार्य संतुलन बनाने हेतु होता है। इन स्तरों पर आपूर्ति, परिवहन, क्षेत्र आयुध डिपो, और चिकित्सा सुविधाओं आदि की भारी रसद सहायता प्राप्त होती है।

संस्थागत स्तर पर, क्षेत्र बलों को कभी स्थिर नहीं किया गया। नए क्षेत्र बलों का पुनर्गठन और सृजन, मानदंड हैं, जो आंतक पर पुर्नविचार करने के लिए और नई तकनीकियों के उद्धव से प्रेरित किया गया है। साधारण शब्दों में, यदि हमारी संस्थाएं मूल रूप से त्रिकोणीय हैं, तो किसी मिशन हेतु इन्हें चतुर्भुज या पंचकोण रूप दिया जा सकता है।
टुकड़ों में आधुनिकीकरण हर मायने में व्यर्थ है। स्वतंत्रता के उपरान्त सभी शस्त्र, ढाई आधुनिकीकरण चक्रों से गुज़र चुके हैं। हास्य की भावना के सामान्य कोटे से भी कम के साथ लोगों के लिए, यह थ्री-लेग्ड आर्म्स रेस है जिसमें आसपास के लोग, पालन करने के लिए जाविड, जोशीश और जियांग्स को चला रहे हैं।
कम से कम भारतीय सेना ऐसी नहीं है। भारतीय सेना, रक्षा क्षेत्र में बढ़त कायम करने व साथ ही यह सुनिश्चित करने की दिशा में पूर्णतः जागृत है कि कोई भयावह नुकसान परिचालन कार्य क्षमता पर विपरीत प्रभाव न पहुंचाए। यहां तक कि, अत्यधिक स्पष्ट व प्रबल आलोचक भी इस बात पर सहमत होंगे, कि भारतीय सेना देश द्वारा उन्हें प्रदान की गई सुविधाओं के लिए कृतज्ञ है, यद्यपि उन पर इसके लिए अत्यधिक दबाव है।
- सहारा देना- कालातीत योद्धाओं के पंथ और युद्ध व महामारी में भाईबंदी की उनकी भावना को बनाएं रखना। शस्त्रों की विशिष्ट शैलियां, युद्ध के समय एक-दूसरे की पूरक सिद्ध होती हैं।
- केन्द्र बिंदु- संगठनात्मक, सैद्धांतिक और उपकरण परिवर्तन (क्रम में न सही) को स्वीकार करने के लिए हमारे क्षेत्र कमांडरों की क्षमता के साथ रणनीतिक मुद्दों की एक बारीक धारणा सम्मिलित होती है। इसके साथ, उनके कौशल को संयुक्त शस्त्र और अत्यधिक उच्च मुकाबले को करने वाली रसद टीम में व्यक्तिगत परिसम्पत्तियों को मिश्रित करने के लिए होती है।
- प्रौद्योगिकी और उपकरण- यह उस सीमित क्षेत्र का भाग है जिसमें अधिकतर आधुनिकीकरण की बात होती है। स्वयं में, ‘उपकरण’, मात्र कुछ उत्कृष्ट लौह उत्पादन या जटिल सर्किटों का संघटन हो सकते हैं; परन्तु जब इन्हे इनके पूरक के साथ जोड़ा जाता है, तो वे जीवंत हो उठते हैं व अपनी एकल क्षमता से कहीं अधिक मारक सिद्ध होते हैं।

व्यापक तौर पर, भारतीय सेना पर्याप्त रूप से सज्जित है। यद्यपि ऐसे कुछ क्षेत्र हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता है या आधुनिकरण अभी बाकी है, परन्तु इससे किसी भी प्रकार, इस तथ्य को नाकारा नहीं जा सकता कि भारतीय सेना में एक निवर्तक गुण है, जिसमें आक्रमणकर्ता को किसी भी हिंसक गतिविधि से पूर्व एक अत्यधिक चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
पश्चिमी क्षेत्र की यंत्रीकृत सेनाएं, गतिशील, उच्च मार क्षमता के संतुलित समूह रखती हैं। अग्रणी अस्त्र-शस्त्रों का लड़ाकू दलों के साथ संयोजन, एक उच्च रूप में यहां देखा जा सकता है। टी-72, बीएमपी श्रृंखला पैदल युद्ध वाहन, विविध प्रकार की एंटी-टैंक मिसाइलें, विमान, तीव्र टोही वाहन, एफ एच-77/बी-02 मध्यम बन्दूक तथा भारत में उत्पादित अन्य क्षेत्र टुकडि़यों का निर्माण और विकास, विविध प्रकार की स्वचालित वायु रक्षा मिसाइलें तथा बन्दूक प्रणालियाँ, विद्युत् शस्त्र व्यूह, प्रथम श्रेणी मारक; जो ड्राई व वेट क्रासिंग को साथ लाते हैं, ये सभी सहायक अनुपात में मिश्रित हैं। यहां, ”हम, युद्धक्षेत्र के नायक हैं” की सारी धूम को आसानी से शांतिपूर्वक दफन कर देते हैं।

पहाड़ों में, हल्की व सहज सेना एवं शस्त्र का प्रयोग किया जाता है, जिन्हे इंजीनियरों, संकेतों, हेलीकॉप्टरों और जानवरों के द्वारा समर्थन दिया जाता है, जो संयुक्त-हथियार दृष्टिकोण बनाने के लिए होते हैं। उपकरणों में आधुनिकीकरण की सबसे प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति, सियाचिन में है, जहां इन संसाधनों के अभाव में बहुत कम रक्षित सैन्य दुर्ग या मोर्चाबंदी नहीं की जा सकती हैं। इसमें एक मारक सैन्य संरचनात्मक ढांचा भी शामिल है जो हर विपरीत परिस्थिति हेतु कार्यशील है। दो अन्य चीज़ें शेष हैं, जिन्हे स्पष्ट रूप से व्यक्त करना आवश्यक है।
भारतीय सेना, अपने प्रतिद्वंदियों की वजह से सम्मान की पात्र बनती है और स्वयं को घबराने से वंचित रखती है क्योंकि उन्हे पता है कि ”हमारा एक-एक सैनिक, उनके दस के बराबर है।”
भारतीय सेना, स्वयं को कभी भी, कहीं भी दूसरे से कमतर नहीं आंकती है।